BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, April 15, 2011

पपीहा सा था कैसे देखा



पपीहा सा था
कैसे देखा  

फुलवारी से
जब निकली मै
एक कली की
खुश्बू लेकर
मतवाले भौंरे से
तूने
मंडराए फिर
गदराये यौवन 
को मेरे
पपीहा सा था
कैसे देखा  

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१६.०४.2011


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
अभिनन्दन आप का ,हिंदी बनाने का उपकरण ऊपर लगा हुआ है -आप की प्रतिक्रियाएं हमें ऊर्जा देती हैं -शुक्ल भ्रमर ५