(जागरण जंक्सन दिनांक ३०.०६.२०११ -हमारे सभी पाठकों और जागरण जंक्सन को हार्दिक आभार ये सम्मान देने के लिए -भ्रमर५ ) कृपया ये उपर्युक्त रचना हमारे दूसरे ब्लॉग भ्रमर की माधुरी में पढ़ें, http://surendrashuklabhramar.blogspot.com )
कौवे चार वहां बैठे हैं
सोना चोंच मढ़ाये
उड़ उड़ मैले पर मुह मारें
काग-भुसुंडी बन बतियाएं !!
--------------------------
शेर वही जो बाहर निकले
भूख लगे-बस -खाना खाए
कुछ पिजड़े में गीदड़ जैसे
नोच-खसोट-के गरजे जाएँ !!
----------------------------
हठी मस्त है घर-घर घुमे
कुत्ते भौं भौं भौंके जाएँ
कभी सामने आ कर भौंको
मारीचि से तुम तर जाओ !!
-------------------------------
ये घर अपना एक मंदिर है
देव -देवियाँ पूत बहुत हैं
कर -पवित्र-आ-दीप जलाना
राक्षस -वन-मुह नहीं दिखाना !!
---------------------------------
अभी वक्त है खा लो जी भर
लिए कटोरा फिर आना
अपना दिल तो बहुत बड़ा है
चमचे-चार-भी संग ले आना !!
------------------------------------
उन जोंकों संग -लिपट रहो ना
खून चूस लेंगी सारा
होश अगर जल्दी कुछ करना
नमक डाल-कुछ नमक खिलाना !!
----------------------------------------
नदी तीर एक सेज सजी है
आग दहकती धुँआ उठा है
जिनके दिल से खून रिसा है
दंड लिए सब जुट बैठे हैं
--------------------------------
शुक्ल भ्रमर ५
२९.०६.२०११
जल पी बी
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं