BHRAMAR KA DARD AUR DARPAN

Friday, August 26, 2011

नदी की धारा मत मोड़ो हे ! ये सैलाब न ले डूबे


नदी की धारा मत मोड़ो हे !
ये सैलाब न ले डूबे
बहुत तेज धारा है इसकी
नहीं संभलने वाली
हैं गरीब भूखे किश्ती में
करो नहीं मनमानी !!
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अरे भागीरथ के गुण गाओ
जिसने इसे उतारा
बड़ी पुन्य पावन ये धारा
सदियों से है तारा
श्वेत हंस सी -माँ-शारद सी
ईमाँ-धर्म ये न्यारा
————————-
धारा ! -जाति धर्म न बाँटो
सूप सुभाय ले छांटो
अच्छा गुण – जो काम में आये
जन हित का हो हर मन भाये
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——————————-
तेरी कश्ती मेरी कश्ती
कल के युवा जवान की कश्ती
सेना और किसान की कश्ती
भारत के हर-जन की कश्ती
डूब न जाएँ -कुटिल चाल से तेरी
नहीं बजा रन-भेरी
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माना तू है बड़ा खिलाडी
और बड़ा तैराक !
इनमे कितने गांधी -शास्त्री
भगत सिंह-आजाद !!
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जिनकी एक जुबान हिलने से
क्रूर भंवर रुक जाए
कदम ताल गर चलें मिलाये
ये धरती थर्राए !!
—————————–
इससे पहले घेर तुझे लें
सौ -सौ छोटे नाविक
अरे जगा ले मृतक -ह्रदय को
हमराही हो -संग-मुसाफिर !!
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क्या जमीर हे मरा  तुम्हारा
देश -भेष कुछ नहीं विचारा
उस दधीचि की हड्डी से हे !
थोडा    नजर     मिलाओ
वज्र से जो तुम ना टूटे तो
मोड़ो धारा -या बह जाओ !!
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शुक्ल भ्रमर ५
जल पी बी २६.८.२०११




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, August 24, 2011

भ्रष्टाचारी भारत में -रह लो ?? नहीं -कहेंगे-भारत छोडो …


भ्रष्टाचारी भारत में -रह लो ??
नहीं -कहेंगे-भारत छोडो …
गोरे होते तो कह देते
“काले” हो तुम-भाई -मेरे
शर्म हमें -ये “नारा’ देते
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———————-
ये आन्दोलन बहुत बड़ा है
खून –पसीना- सभी लगा है !
बहने -भाई -बाप तुम्हारा
बेटा देखो साथ खड़ा है !!
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हम चाहें तो गरजें बरसें
आंधी तूफाँ कहर दिखाएँ
चपला सी गिर राख बनायें
इतने महल जो भूखे रख के
तुमने बासठ साल बनाये
मिनट में सारे ढहा दिखाएँ
शांत सिन्धु लहराते आयें
और सुनामी हम बन जाएँ !!
—————————-
कदम -ताल में शक्ति हमारे
कांपें भू -वो जोश दिखाएँ
पांच पञ्च के हम सब प्यारे
न्याय अहिंसा के मतवारे
लाठी गोली की आदत तो
वीर शहीदों ने सिखलाये
—————————
भूखे अनशन पर हम बैठे
लूटे जो -कुछ उसे बचाएं ??
गाँधी -अन्ना भूखे बैठे
भ्रष्टाचारी किस-मिस खाएं
जो ईमान की बात भी कर दे
छलनी गोली से हो जाए
——————————–
हे रक्षक ना भक्षक बन जा
गेहूं के संग घुन पिस जाएँ
क्या चाहे तू यज्ञं कराएं
तक्षक -नाग-सांप जल जाएँ
————————————
हमसे भाई “भेद ” रखो ना
घर में रह के “सेंध” करो ना
जिस थाली में खाना खाते
काहे छेद उसी को डाले
—————————
कल बीबी बेलन ले दौड़े
बेटा -गला दबाने दौड़े
दर्पण देख के तुझको रोये
तू क्या चाहे ?? ऐसा होए ??
————————————–
शुक्ल भ्रमर ५
२५.०८.२०११ जल पी बी




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, August 21, 2011

आज घर घर मने है दिवाली श्याम जू पैदा भये-भ्रमर-गीत


आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर ढेर सारी हार्दिक शुभ कामनाएं आइये आवाहन करें की कृष्ण हम सब में आयें और अनाचार मिटायें हमारे सभी आन्दोलन सफल हों और दुराचारी भ्रष्टाचारी मुह की खाएं-इस कलयुग में द्वापर की बातें याद आ जाती हैं -आज तो कितनी द्रौपदी बेचारी कोई कान्हा नहीं पाती हैं ..ग्वाल बाल सब .सखियों सहेलियों का पवित्र प्यार अब कहाँ …जो भी हो आज अपने अंगना में गोपाला को आइये लायें ….गोदी में खिलाएं ….स्वागत करें …काले काले बदरा ..भादों का महीना … -भ्रमर ५
———–भ्रमर गीत———
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श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
ढोल मजीरा तो हर दिन बाजे
आज घर घर बजे सब की थाली
श्याम जू पैदा भये
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घुंघटा वाली नाचे चूड़ी कंगन बजाई के
बच्चे बूढ़े भी नाचें बजा ताली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
बदरा बजाये पशु पक्षी भी नाचें
पेड़ पौधों में छाई हरियाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
कृष्ण पाख कुछ चाँद छिपावे
आज घर घर मने है दिवाली  
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
भादों में नदी नाले सागर बने
कान्हा चरण छुए यमुना भयीं खाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
पूत जने माई बप्पा तो झूमें
आज देशवा ख़ुशी भागशाली
श्याम जू पैदा भये
आज मथुरा में -हाँ आज गोकुला में
छाई खुशियाली
श्याम जू पैदा भये !!
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कृपया मेरी अन्य तरह की रचनाएँ मेरे अन्य ब्लॉग पर पढ़ें जो इस पृष्ठ पर दायीं तरफ रहती हैं ….
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२२.०८.२०११
प्रतापगढ़ उ.प्र. ६.३० पूर्वाह्न




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, August 20, 2011

कलयुग है या भ्रष्टतंत्र है तानाशाही-अत्याचार???


कलयुग है या भ्रष्टतंत्र है
तानाशाही-अत्याचार???
चार जमा कर स्विस में बैठे
भूखे मरें हजार .................


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चक्की में जो पिसे लोग हैं
अब चक्की पर चढ़ बैठे !
लिए हथौड़ा  छेनी संग में
कितनी मूर्ति ---गढ़ बैठे !!



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जला -"दिया" है -पूंछ सुलगती
कभी धमाका हो सकता !
अंधियारे में डींग हांकती
सोयी बैठी है सरकार !!
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इतने दिन में ना लिख पाओ
"रामायण" कोई बात नहीं
राम से मिल के चरण पकड़ के
राम कथा के नीति नियम -
"कुछ "- लगे लगा लो बात बने !!
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रावण सा तुम अहं भरो ना
समय चक्र चलता है -"काल"
मन में मैल भरी जो धो लो
आँखों से पट्टी तो खोलो
गांधारी- धृत राष्ट्र- बनो ना
कौरव -तेरे ना टिक पायें
"पांच" पांडव- हैं दमदार !!
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पत्थर ढोती वानर सेना
पुल भी कभी बना सकती
ले मशाल जो बढ़ निकली है
लंका- आग लगा सकती !!
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पास विभीषण हैं तेरे भी
कुछ मंदोदरी भी हैं बैठी
उनकी भी कुछ बात सुनो हे !
दंभ भरो ना हे पाखंडी !!
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(सभी फोटो गूगल /नेट/याहू से साभार )
शुक्ल भ्रमर ५
१०.२० मध्याह्न जल पी बी
२०.०८.२०११


दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Tuesday, August 16, 2011

भ्रष्ट -चोर को चोर कहें ना ये कैसी आजादी ??


कैसा अपना लोकतंत्र है ??
कैसी लोकशाही ????
भ्रष्ट -चोर को चोर कहें ना
ये कैसी आजादी ??
आओ मिलकर शोर मचाएं
चीख -चीख हम रोयें
images
(फोटो साभार गूगल /नेट से लिया गया )
———————–
पेट पे लात मार जो बैठा
क्या राजा कहलाये ?
बड़ी-बड़ी कोठी वो बैठा
झुग्गी नजर गडाए !!
आओ मिलकर शोर मचाएं
चीख -चीख हम रोयें
——————————-
मरते भूखे-कृषक -युवा हैं
मरते कोख में बच्चे
भूख अभी भी मुख्य समस्या
कैसी नीति बनाये
सौ सौ गार्ड के बीच चले हैं
जन-सेवक कहलाये ?
आओ मिलकर शोर मचाएं
चीख -चीख हम रोयें
————————
महगाई भ्रष्टाचारी से
दे दो हमें निजात
या अनशन भूखे मरने दो
सुन लो हमरी बात
कैसा न्याय कहाँ हैं मंत्री
दूध पिला हमने जो भेजे
“डसते ” देश यही क्या संतरी
रक्त-बीज हैं दस दस फैले
आओ मिलकर शोर मचाएं
चीख -चीख हम रोयें
————————————
कला धन-काली तेरी कमाई
मुह भी काला कर अपना !
श्वेत वस्त्र वो टोपी छोडो
भारत-भारती श्वेत हंस -जनता प्यारी से
दूर हटो तुम
दूर हटो तुम ………
चीख -चीख अपना कहना !!
आओ मिलकर शोर मचाएं
चीख -चीख हम रोयें
—————————-
धैर्य हमारा टूट न जाये
लग जाए ना आग
अभी होश में आ जाओ
या भाग सके तो भाग
अब मैराथन शुरू हो गयी
लम्बी चले लड़ाई
गुरु -”माँ” की कुछ सीख बची तो
धर्म -न्याय का राह पकड ले
बन रक्षक कहलाये भाई !!
आओ मिलकर शोर मचाएं
चीख -चीख हम रोयें !!
———————————
शुक्ल भ्रमर ५
जल पी बी
१७.८.२०११



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, August 14, 2011

लिए तिरंगा मै निकला हूँ


हीरा हैं हम सोना हैं हम 
चांदी सा हम चमकेंगे !
सोने की चिड़िया, 
दूध की नदिया ,
"हरित-क्रांति" दिखलायेंगे !!
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गाओ बच्चों मेरे संग में !
मिल जाओ सब मेरे दल में !!
घर-घर से आवाज उठी है 
बन्दे मातरम -बन्दे मातरम !
लिए तिरंगा मै निकला हूँ 

कदम ताल कर -छम्मक छम !
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गाँव गली हर शहर नगर में 
रंग बिरंगा उत्सव है !
गीत शहीदों की गाते सब 
शीश झुका नतमस्तक हैं !!
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न्याय अहिंसाभाईचारा ,
प्रेम सभी दिल में भर दें !
दुश्मन कहीं जो आँख दिखाए 
धूल-धूसरित पल में कर दें !!
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सिंह से गरजें चोटी  चढ़ के 
कर अपनी चौड़ी छाती !
जल थल नभ की अपनी सेना 
दुनिया में गरजे जाती !!
-------------------------------
राखी बाँधे  जोश दिए हैं 
सब वीर अमर अपने भाई !
जन-गण मन अधिनायक जय हे 
गीत -सांस-अपनी थाती !!
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अग्नि- पृथ्वी- ब्रह्म-अस्त्र सब 
अब सब अपनी मुट्ठी में !
सोने सा तप के हम निकले 
मातृ-भूमि की भट्ठी से !!
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रहे न कोई क्षेत्र अधूरा !
कर पायें हम जो ना पूरा !!

माँ-भारती है गुरु हमारी !
बलि जाए हम प्राण पियारी !!
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अनुशासन में पल के बढ़ के 
नम्र शिष्ट हम बन जाएँ !
मातृ-भूमि की रक्षा में डट 
न्योछावर हम हो जाएँ !!
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हमारे सभी मित्र गन और सम्माननीय नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभ-कामनाएं -जय भारत जय हिंद .

ये कविता हमारे ब्लॉग बाल झरोखा सत्यम की दुनिया से उद्धृत 
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल "भ्रमर"५
प्रतापगढ़ उ.प्र. ३.१२ पूर्वाह्न 
१५.०८.२०११ 



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, August 13, 2011

पढ़िए अन्ना हजारे द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा पत्र


पढ़िए अन्ना हजारे द्वारा प्रधानमंत्री को लिखा पत्र
http://akhtarkhanakela.blogspot.com/2011/08/blog-post_4944.html

प्रिय अख्तर खान अकेला भाई आप के द्वारा उद्धृत  ये  अन्ना हजारे जी का प्रधानमंत्री को लिखा गया पत्र -एक सराहनीय कार्य है -इसे हमारे सभी नागरिक को पढना समझना चाहिए और अपने मन मस्तिष्क को उसी अनुरूप तुरंत ढाल कुछ कार्य करना चाहिए -
बहुत सुन्दर बधाई हो आप को -
हम ये पत्र और जगह भी उद्धृत कर रहे हैं और हमारे सभी देश प्रेमियों से अनुरोध भी की कुछ देश हित में कार्य करे अविलम्ब -
शुक्ल भ्रमर ५ 
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Friday, August 12, 2011

भैया का गहना है बहना !! -(रक्षा -बंधन और मिठाई)


बहना मेरी दूर पड़ा मै
दिल के  तू  है पास 
अभी बोल देगी तू "भैया"
सदा लगी है आस 
-------------------
मुन्नी -गुडिया प्यारी मेरी 
तू है मेरा खिलौना 
मै मुन्ना-पप्पू-बबलू हूँ 
बिन तेरे मेरा क्या होना !
---------------------------
तू ही मेरी सखी सहेली 
कितना खेल खिलाया 
कभी -कभी मेरी नाक पकड़ के 
तूने  बहुत चिढाया !
--------------------
थाली में तू अपना हिस्सा 
चोरी से था डाल खिलाया 
जान से प्यारी मेरी बहना 
भैया का गहना है बहना !!
----------------------------
जब एकाकी मै होता हूँ 
सजी थाल तेरी वो दिखती 
चन्दन जभी लगाती थी तू 
पूजा- मेरी आरती- करती !
रक्षा -बंधन और मिठाई 
दस-दस पकवान पकाती थी 
-----------------------------









बाँध दिया बंधन से तूने   
ये अटूट रक्षा जो करता 
मेरी बहना सदा निडर हो 
ख़ुशी रहे दिल हर पल कहता 
-------------------------------


जहाँ रहे तू जिस बगिया में 
हरी-भरी हो फूल खिले हों 
ऐसे ही ये प्यारा बंधन 
सब मन में हो -गले लगे हों 
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तू गंगा गोदावरी सीता 
तू पवित्र मेरी पावन गीता 
तेरी राखी आई पाया 
चूम इसे मै गले लगाया 
-----------------------------
कितने दृश्य उभर आये रे 
आँख बंद कर हूँ मै बैठा 
जैसे तू है  बांधे राखी 
मन -सपने-उड़ता मै "पाखी"
---------------------------------
तेरी रक्षा का प्रण बहना  
रग-रग  में राखी दौडाई 
और नहीं लिख पाऊँ बहना 
आँख छलक मेरी भर आई 
---------------------------------
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
१३.०८.११  ८.४५ पूर्वाह्न 
जल पी बी 



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Wednesday, August 10, 2011

“मै” मेरी खाल-मेरा ढोल (थाली बजाओ)


दिल में उठा एक जूनून
जोश -खौलता खून
कलयुग की आंधी
is
श्वेत वस्त्र- एक टोपी-
खादी -सूखी रोटी
बड़ी लडाई लड़ते आया
मरते-मरते बचते आया
दो चार लोग पीठ ठोंक
आगे झोंक देते
हम देख लेंगे
पीछे हैं हम आप के
नगाड़ा पीटिये
ढोल बजाइए
थाली बजाइए
Anna-Rocks-Anna-Hazare-Jantar-Mantar
बहरों को जगाइए
आवाज बुलंद हो
संसद हिल जाए
जनता खिल जाए
जनता मालिक है
अपने पसीने की – खाने का
अधिकार है –
भूखे को अनशन का !
खुद बोया तो खुद काटे
काहे काले कौवों को बाँटें !
—————————
भीड़ जुटी -एक-दस-सौ -लाख
people1
रावण का पुतला जलाने को
तमाशा-राम और रावण
महाभारत बनाने को
दो मुहे सांप-मीडिया-बाजीगरी
————————————–
पर अगले कुछ पल थे भारी !
धमाका -धुंआ -धुन्ध
चीख पुकार द्वन्द
रावण – राक्षस बिखर गए !
रक्त-बीज बन -फिर
जम गए -थम गए !!
अँधेरे कोहराम धुन्ध के आदी थे
और उधर मैदान-ए-जँग में -बाकी थे
“एक” अभिमन्यु
चरमराता हमारा ढाँचा
मै -मेरी खाल-मेरी ढोल
जिसमे था बड़ा पोल
आवाज ही आवाज बस
पीछे मेरे दस लाख करोड़ से
करोड़ -लाख-दस जा चुके थे
कहाँ ये कंगाल के साथ कब रहे हैं ???
शिखंडी-दुर्योधन-धृत-राष्ट्र
बेचारी ये जनता ये अधमरा राष्ट्र
————————————–
और पानी की तेज बौछार
ने मेरी आँखें खोल दी
धूल चाटते कीचड में सना पड़ा मै
जन गण मन अधिनायक जय हे !!!
boy
गाता -कराह उठा !!!
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर”५
००.२३ पूर्वाह्न
१०.०८.२०११ जल पी बी



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Sunday, August 7, 2011

भीष्म -शैय्या पर पड़े


भीष्म -शैय्या पर पड़े
आज आप “भीष्म ” शैय्या पर पड़े
इतने दिन सब कुछ सहे
आराम से खून देते जा रहे हैं
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दीजिये -ख़ुशी है














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लेकिन हम मच्छर नहीं


की केवल अपना पेट भर के
आप को छोड़ देंगे
हमारी तो पूरी जमात है





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घर है परिवार है
और जब आप चेतना शून्य हो जायेंगे

तो हम सब आप के चाहने वालों को

घर परिवार को

आप की जमात को



एक -एक कर
बुला लेंगे
सुला देंगे
इसी शैय्या पर
खून देते रहने के लिए
MH900447141






(सभी फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२८.७.२०११ जल पी बी
४.२९ पूर्वाह्न
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दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Saturday, August 6, 2011

ये “भैंसा” - गैंडा सा मोटा चमड़ा लिए


भीड़ इकट्ठी होती है
शोर मचाती है
ढोल पीटती है
लेकिन उसकी लाल आँखें
बड़ी सींग
अपार शक्ति देख
कोई पास नहीं फटकता
कभी कुछ शांत निडर
खड़ा हो देखता
कान उटेर सब सुनता रहता
कभी कुछ दूर भाग भी जाता
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लेकिन ये “भैंसा”
गैंडा सा मोटा चमड़ा लिए
जिस पर की लाठी -डंडे -
तक का असर नहीं
खाता जा रहा
खलिहान चरता जा रहा
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अब तो ये अकेला नहीं
“झुण्ड ” बना टिड्डी सा
यहाँ -वहां टूट पड़ता !!

( सभी फोटो गूगल/ नेट से साभार लिया गया )

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर ”
5.04 पूर्वाह्न जल पी बी
०६.०८.२०११




दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं

Thursday, August 4, 2011

आई बरखा बहार –घर आ जा बलमू


आई बरखा बहार –घर आ जा बलमू
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आई बरखा बहार
रिमझिम पड़े ला फुहार
जियरा उमडि–उमडि तरसाए
घर आ जा बलमू !!
—————————–






नीम के डारी झूला पड़ गए
तन मन सब गदराया
धानी चुनरिया – पेंग लड़ाकर
उडि मन- ज्वालामुखी बनाया
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हरियाली -संग फूल खिले- पर
पीला पड़ता गात हमारा
मूक नैन हों इत- उत भटकें
रिमझिम सावन मन ना भाता
जल्दी बरसे घहर-गरज कर
जियरा जरा जुडा जा
घर आ जा बलमू …..
—————————–

सखी सहेली राधा-कृष्णा
रास -रंग सब मन भरमाये !
पावस ऋतू नित बरस -बरस के
अग्नि काम भड़काए !
भीग-भीग इत उत घूमूं मै
नैन नीर हिय जेठ दुपहरी
बेबस पपीहा पीऊ -पुकारे !
सेजिया नींद न आये !
घर आ जा बलमू ————–
———————–
नागपंचमी पे आ जाना
गुडिया -गुड्डा –मेला- सर -का
जी भर लुत्फ़ उठाना
कजरी -मल्हार-वो मटर का दाना
मार-मार -वो सजा सजाया लाठी डंडा
कुश्ती- दंगल -हंसी ठिठोली
sawan_ke_jhule_b1














रंग रंगोली -झूले पर हे पेंग लगाये
पेंच लड़ाए -ज्यों पतंग सा
बदली तक मुझको पहुँचाना
इतने ऊपर !
इन्द्रधनुष से रंग बदल मै
शीतल हो जब बरस पडूँ
बूँद बूँद मोती बन जाये
हीरे सी मै चमक पडूँ
लिए बांसुरी- मीत – मल्हार
कजरी –गा- मै -कमल खिलूँ
तुम भौंरे हे ! बंद कली में
रात यहीं सो जाना
घर आ जा बलमू ……
( सभी फोटो साभार गूगल/नेट से लिया गया )
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर ”
4.08.2011, ५.३५ पूर्वाह्न जल पी बी



दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं